
यदि याद करें उन डरावनी और दिल दहलाने वाली तस्वीरों की, जो हम सबने वैश्विक महामारी कोरोना की चेन को तोड़ने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के तुरंत बाद देखीं थीं। उस दौरान राष्ट्रीय राजमार्गों पर हजारों प्रवासी मजदूरों के काफिले अपनी मंजिल की तरफ बढें चले जा रहे थे। उन मजदूरों में उतर प्रदेश के मजदूरों की संख्या सबसे ज्यादा (लाखों में) थी। ये दिल्ली, मुम्बई, चेन्नई, हैदराबाद, सूरत, बड़ोदा, अहमदाबाद, अमृतसर, लुधियाना, जालंधर, पटियाला, इंदौर, चडीगढ़ वगैरह से अपने-अपने पैतृक गांवों की तरफ जा रहे थे। इन्हें तब कुछ भी नहीं पता था कि इन्हें अपने घर-गांव में जाकर कोई रोजगार भी मिल सकेगा या नहीं। यानी उन्हें अपना भविष्य गहरे अंधकार में डूबा हुआ लग रहा था।

लेकिन, उत्तर प्रदेश सरकार ने इन सड़क पर आ गए मजदूरों को जिस तरह से सहारा दिया है, वह काबिले-तारीफ है। योगी आदित्यनाथ सरकार ने भीषण आपदा के समय लाखों श्रमिकों के कौशल व पूर्व अनुभव का डेटा आनन-फानन में तैयार किया और रोजगार सृजन की शानदार व्यवस्था की। उत्तर प्रदेश सरकार ने प्रदेश में प्रवासी मजदूरों समेत करीब 1.25 करोड़ लोगों को सम्मानपूर्वक रोजगार दिलाने का काम शुरू किया है। यह पहल दिखाती है कि उत्तर प्रदेश सरकार की तैयारी कितनी सघन और व्यापक रही होगी।
इसी पहल के कारण उत्तर प्रदेश सरकार प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार अभियान में अन्य राज्यों से कहीं आगे है। उत्तर प्रदेश सरकार करीब 60 लाख लोगों को गांवों के विकास से जुड़ी योजनाओं में तो करीब 40 लाख लोगों को छोटे उद्योगों यानी एमएसएमई में ही रोजगार देने जा रही है। इसके अलावा स्वरोजगार के लिए भी हजारों उद्यमियों को मुद्रा योजना के तहत करीब 10 हजार करोड़ रुपए का ऋण दिया जा रहा है।
एक बात समझ लेनी चाहिये कि जब सरकारें इस तरह के जनकल्याणकारी काम करती है, तब ही उसका इकबाल बुलंद होता है। उत्तर प्रदेश सरकार से इंग्लैंड, फ्रांस, इटली व स्पेन जैसे विकसित देश भी सीख सकते हैं कि कोरोना जैसी महामारी से अपने लोगों को बचाने के उपाय किस तरह से किए जाएं। यह संयोग की ही बात है कि इन चारों देशों की कुल आबादी तो अकेले उत्तर प्रदेश की है I 24 करोड़ की आबादी वाले उत्तर प्रदेश सरकार ने आपदा को अवसर में भी बदलने का मौका नहीं छोड़ा। संकट के हर मोड़ पर दृढ़ता से मुकाबला किया।

बेशक, यह तो मानना ही होगा कि उत्तर प्रदेश की छवि इस संकट काल में उजाले की तरह से उभरकर सामने आई है। उत्तर प्रदेश के डॉक्टर, पैरामेडिकल स्टाफ, सफाई और सुरक्षा कर्मचारी, पुलिसकर्मी, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, बैंक और पोस्ट ऑफिस कर्मी, परिवहन विभाग आदि मुलाजिमों ने पूरी निष्ठा के साथ अपना-अपना योगदान इस संकट की घड़ी में किया है ।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस संक्रमण के प्रसार के कारण लॉकडाउन में प्रदेश लौटे प्रवासी कामगार व श्रमिकों को रोजगार देने के लिए आत्मनिर्भर उत्तर प्रदेश रोजगार अभियान की शुरुआत करते हुए सही ही कहा कि यूरोप के चार बड़े देश इंग्लैंड, फ्रांस, इटली, स्पेन की जनसंख्या के बराबर अकेले ही उत्तर प्रदेश की जनसंख्या है। उन चार देशों में कोरोना से 1.3 लाख लोगों की मृत्यु हुई है जबकि उत्तर प्रदेश में सिर्फ 611 लोगों की ही मौत हुई। अमेरिका के पास तो सबकुछ है, लेकिन फिर भी वो कोरोना से बुरी तरह से तक प्रभावित है। अमेरिका की जनसंख्या 33 करोड़ है, वहां अबतक 1 लाख 25 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। अगर उत्तर प्रदेश में भी शुरू में ही हालात नहीं संभाले जाते तो प्रदेश में भी अबतक इसी अनुपात में 85 हजार लोगों की जान चली जाती।
उत्तर प्रदेश में 30 लाख से अधिक प्रवासी मजदूरों की वापसी व लॉकडाउन के दौरान काम बंद होने से बेरोजगार हुए लोगों के समायोजन के लिए सरकारी वरिष्ठ अफसरों से युद्ध स्तर पर व्यापक कार्ययोजना बनाने को कहा गया था। उसी का नतीजा है कि राज्य में मनरेगा, एमएसएमई, निर्माण परियोजनाओं व ग्राम्य विकास से जुड़े विभिन्न कार्यक्रमों को केंद्रित कर 1.25 करोड़ लोगों के रोजगार का रास्ता तलाशा गया है। यह इसलिये भी आसान हो गया क्योंकि, उत्तर-प्रदेश की योगी-सरकार ने पहले से ही सभी जनपदों के लिए एक-जनपद-एक उद्योग को चिन्हित कर काम शुरू कर दिया थाI क्या किसी को याद आ रहा है कि देश के अंदर या बाहर किसी सरकार ने एक साथ इतने अधिक लोगों को रोजगार देने संबंधी ठोस पहल की हो? कोरोना के कारण पैदा हुए संकट के शिकार लोगों के लिए 25 तरह के कार्यों को चिह्नित किया गया है, जिनमें उन्हें एडजेस्ट किया जाएगा। इसके लिए एक दर्जन विभागों को इसके कार्यान्वयन की जिम्मेदारी दी गई है। इनमें ग्राम्य विकास, पंचायती राज, सड़क परिवहन, खनन, रेलवे, पेयजल व स्वच्छता, पर्यावरण व वन, पेट्रोलियम व नेचुरल गैस, वैकल्पिक ऊर्जा, रक्षा, टेली कम्युनिकेशन और कृषि विभाग शामिल हैं।

हालांकि उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों और बेरोजगारों के लिए तो राहत भरी खबर आ गई है, अब इसी तर्ज पर प्रयास तो बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य प्रदेश, छ्तीसगढ़, झारखंड आदि राज्यों को भी शीघ्र कोशिशें करनी होंगी ताकि कोरोना से मारे-मारे घूम रहे मजदूरों को कोई काम-धंधा मिल जाए। फ़िलहाल अधिकांश के पास कोई रोजगार नहीं है। सारे देश ने देखा था जब प्रवासी मजदूर भारी दिक्कतों को झेलते हुए अपने घरों की तरफ पैदल जा रहे थे। कईयों ने सड़कों पर ही दम तोड़ दिया था तो कई अन्य हादसों में इस संसार से चले गए।
जहां प्रवासी मजदूरों को लेकर अधिकतर राज्यों का रुख पत्थर दिल या लापरवाही पूर्ण रहा, वहीं उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने साबित किया था कि उनकी सरकार मजदूरों के साथ खड़ी है। योगी ने प्रवासी मजदूरों को सुरक्षित अपने घरों तक पहुंचाने के लिए सबसे पहले 10 हजार बसों की व्यवस्था करने का फैसला किया था। उत्तर प्रदेश सरकार ने अन्य राज्यों से आने वाले मजदूरों की मेडिकल स्क्रीनिंग के लिए 50 हजार से अधिक मेडिकल टीमें भी लगाईं थीं ।
बहरहाल,अब अपने घरों की तरफ जा रहे प्रवासी मजदूर अपनी मंजिल पर तो किसी तरह पहुंच गए हैं। अब राज्य सरकारों को उनके लिये तत्काल रोजगार की व्यवस्था करने होगी। सरकारों के सामने चुनौती बड़ी है, पर अगर उत्तर प्रदेश सरकार सवा करोड़ लोगों को रोजगार दे सकती है, तो शेष राज्य क्यों नहीं। अब स्थानीय सरकारों को मजदूरों को उनके घरों के आसपास ही रोजगार के विकल्प देने होंगे। इन्हें कुटीर उद्योगों से या कृषि से सम्बंधित छोटे उद्योगों से जोड़ा जा सकता है। इन मजदूरों के बच्चों की शिक्षा की तरफ भी सोचना होगा। इनके बच्चों को सरकारी स्कूलों में दाखिला दिलवाने की पहल भी सरकारें करेंगी ही। अब चूंकि उत्तर प्रदेश सरकार ने एक उदाहरण पेश कर दिया है, इसलिए यह तो कोई नहीं कह सकेगा कि इतने अधिक मजदूरों को उनके राज्य में ही नौकरी देना संभव नहीं है।
लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तभकार और पूर्व सांसद हैं।
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