
आज जहां मदर्स डे है, वहीं अम्मा की बरसी भी हैं, आज से 6 साल पहले 16वे रमज़ान को अम्मा हमें छोड़ कर चली गई। लेकिन जाने से पहले जो कुछ देकर गई। वह दौलत कभी ख़त्म नही होगी। अगर वह दौलत सिर्फ पैसे में होती तो उसके खत्म होने का डर भी होता। अम्मा, हमें वह संस्कार तर्बियत देकर गई है, जिसका मुकाबला दुनिया की किसी दौलत से नहीं हो सकता। मिज़ाज बादशाहत का, दिल मोम का, निडरता शेर की, हालात से लड़ने का हौसला पहाड़ जैसा, दूसरों के दर्द समाने की आदत समंदर सी, मदद करने की आदत मीठे कुँए जैसी, वाणी कोयल सी, गुस्सा गुब्बारे जैसा, हँसी फूलों सी और हमें अपनी बाहों में समाने का सलीका माँ का।
यह अम्मा थी, जिसने निम्बू कागजी, प्याज सुर्ख छिलके, गोबी सफ़ेद, मटर भरी-भरी, नारियल वजनी, भिंडी छोटी छोटी, तोरई पतली, लौकी कच्ची लाना और खाना सिखाया। अपनी रोटी में ग़रीब का हिस्सा, बिना ग़रीब का हिस्सा निकाले न फल खाने देने की आदत हो या खाना। अम्मा का सब सबक़ याद है। छींकते वक्त कपड़े से मुंह को ढ़कना, छींक के बाद अलहम्दुलिल्लाह पढ़ कर अल्लाह का शुक्र अदा करना, खाने से पहले बिस्मिल्लाह पढ़ना, खाने के बाद अल्लाह का शुक्र अदा करना, रास्ते से ईंट-पत्थर एक तरफ करना, कोई बड़ा रास्ते में मिले उनको सलाम, राम राम करना, किसी से भेदभाव, किसी का अपमान हरगिज न करना। सभी का सम्मान एक समान।

एक मर्तबा फ़िल्म स्टार राजबब्बर साहब का घर आना हुआ, अम्मा से मिलकर उनका आशीर्वाद लिया बहुत खुश हुए।
दुनिया की सभी माँ को मेरा सलाम, आपके लिए दुनिया में कोई शब्द नहीं बने जिनसे हम आपका परिचय करा सकें, माँ शब्द के आगे सभी शब्द छोटे हैं।