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पूर्व निर्णयों पर पुनर्विचार से ही सिद्ध होगी अमृत महोत्सव की सार्थकता

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पूरन डावर, सामाजिक चिंतक एवं आर्थिक विश्लेषक


जिन जातियों की उनके काम के नाम से पहचान थी जो देश के रोजगार और स्वरोजगार की नींव थे। जो कि देश की अर्थव्यवस्था को यदि सुदृढ़ नहीं कर सकते थे तो कम से कम देश पर भार नहीं थे लेकिन उनके श्रम का सम्मान कम था या यूँ कहें सम्मान था ही नहीं, उन्हें अच्छी शिक्षा देकर लघु एवं मध्यम उद्योगों में बदला जा सकता था उन्हें सम्माजनक बनाया जा सकता था, मगर विडम्बना रही कि उन्हें आरक्षण का झुनझुना पकड़ा कर जीवन पर्यन्त दलित घोषित ही नहीं बल्कि दलित बना दिया गया।

चंद लोग आरक्षण का लाभ लेते हैं और वह भी सांसद, विधायक, आईएएस, सरकारी अधिकारी बन कर भी जीवन पर्यन्त दलित कहलाते हैं, बाकी के हाथ से उनका काम छिन गया, डिग्री लेकर घूम रहे हैं और बेरोजगारी का रोना रोने के अतिरिक्त उनके पास कुछ नहीं बचा।

आज़ादी के 75वें वर्ष में सरकार को, देश की संसद को कुछ सोचना होगा। डिग्री के साथ उन्हें अपने-अपने पारम्परिक रोजगारों के स्तर को उठा कर अपने पैरों पर खड़ा करना होगा। नौकरी में आरक्षण बंद करना होगा। हमें आर्थिक आरक्षण पर ध्यान देना होगा, यदि कामगार पारम्परिक हुनरमंद आरक्षण के झुनझुने के कारण काम छोड़ देंगे तो देश कभी आगे नहीं बढ़ पायेगा। उनकी मुफ्त प्रारम्भिक शिक्षा, आर्थिक सहायता-प्राप्त उच्च तकनीक और उनके रोजगार के लिए सस्ती ऋण व्यवस्था कारगर हो सकती है।

पारम्परिक नाई पढ़-लिखकर मेक ओवर आर्टिस्ट बन सकता है, मसाजवाला स्पा या थेरेपी सेंटर खोल सकता है, मोची शू क्लीनिक में बदल सकता है, चर्मकार जूता कारखाने का मालिक बन सकता है, चायवाला कॉफी कैफे-डे बन सकता है, पकोड़ेवाला मेक डॉनल्ड बन सकता है, हलवाई हल्दीराम बन सकता है, रसोईया शेफ बन सकता है, ड्राइवर शोफर बन सकता है, गाय-भैंस पालने वाला डेयरी मालिक हो सकता है। पढ़-लिखकर शाक्य या कुशवाह आधुनिक खेती कर फार्म मालिक हो सकते हैं। धोबी वॉशिंग हाउस वाले बन सकते हैं। ये जातियाँ नहीं उनके काम थे, लेकिन पढ़ा-लिखा न होने के कारण सम्मान नहीं था।

आजादी का अमृत महोत्सव सही मायने में तभी सफल होगा जब समय के साथ पूर्व निर्णयों पर पुनर्विचार हो। सरकारी नौकरियों में आरक्षण उस समय की माँग हो सकती है, आज उस समय के निर्णयों पर प्रश्न चिन्ह भी नहीं है किन्तु सभी कामगारों को नौकर नहीं बनाया जा सकता। आज़ादी के 75वें वर्ष में इन कामगार जातियों को दलित न मानकर कामगार का दर्जा देना होगा। सरकारी नौकरी नहीं प्रारम्भिक शिक्षा व तकनीकी शिक्षा के साथ उनको उद्यमियों के रूप में खड़ा करना होगा।

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