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नहीं रहे जानेमाने लेखक, ऐक्टर, फिल्म डायरेक्टर और रंगमंच की हस्ती गिरीश कर्नाड

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बेंगलुरु। जानेमाने लेखक, ऐक्टर, फिल्म डायरेक्टर और रंगमंच की हस्ती गिरीश कर्नाड का सोमवार को 81 साल की उम्र में निधन हो गया। वह लंबे वक्त से बीमार थे। उन्होंने बेंगलुरु में आखिरी सांस ली। पिछले महीने ही उन्होंने 81वां जन्मदिन मनाया था। उन्हें पद्म श्री और पद्म भूषण से भी नवाजा जा चुका था। उनके परिवार की गुजारिश है कि उन्हें किसी तरह का स्टेट फ्यूनरल न दिया जाए। कर्नाड ने साउथ और बॉलिवुड की फिल्मों में काम किया था।

गिरीश कर्नाड ने अपना पहला नाटक ‘ययाति’ कन्नड़ में लिखा था जिसका बाद में अंग्रेजी में अनुवाद हुआ। उनके चर्चित नाटकों में ‘यताति’, ‘तुगलक’, ‘हयवदना’, ‘अंजु मल्लिगे’, ‘अग्निमतु माले’, ‘नगा मंडला’ और ‘अग्नि और बरखा’ शामिल हैं। 1960 के दशक में कर्नाड के यायाति 1961, ऐतिहासिक तुगलक 1964 जैसे नाटकों को समालोचकों ने सराहा था, जबकि उनकी तीन महत्वपूर्ण कृतियां हयवदना 1971, नगा मंडला 1988 और तलेडेंगा 1990 ने अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त की।

2 पद्म सम्मानों के अलावा 1972 में उन्हें संगीत नाटक अकादमी, 1994 में साहित्य अकादमी, 1998 में ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला था। कन्नड़ फिल्म ‘संस्कार’ के लिए सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। इस फिल्म में उन्होंने लीड रोल भी किया था। उन्हें 4 फिल्मफेयर अवॉर्ड भी मिले थे। उनकी हिंदी फिल्मों में उत्सव, पुकार और ‘टाइगर जिंदा है’ जैसी फिल्में शामिल हैं।

गिरीश कर्नाड का जन्म 1938 में माथेरन में हुआ था, जो अब महाराष्ट्र में है। उनकी शुरुआती पढ़ाई मराठी भाषा में हुई। पढ़ाई के दौरान ही उनका झुकाव थिअटर की तरफ बढ़ गया। जब वह 14 साल के हुए तो उनका परिवार कर्नाटक के धारवाड़ शिफ्ट हो गया। उन्होंने धारवाड़ के कर्नाटक आर्ट्स कॉलेज से गणित और सांख्यिकी में BA की पढ़ाई की। ग्रैजुएशन के बाद वह इंग्लैंड में ऑक्सफर्ड से फिलॉस्फी, पॉलिटिक्स और इकनॉमिक्स की पढ़ाई के लिए पहुंचे। वह 1963 में ऑक्सफर्ड यूनियन के प्रेजिडेंट भी चुने गए। ऑक्सफर्ड में वह करीब 7 साल तक रहे और थिअटर से भी जुड़े रहे।

बाद में वह अमेरिका चले गए और यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो में पढ़ाने लगे। हालांकि, अध्यापन में उनका मन नहीं लगा और वह भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद वह पूरी तरह से साहित्य, फिल्म और रंगमंच से जुड़ गए। उनकी रचनाओं में इतिहास और मिथॉलजी का संगम होता था। उनकी ज्यादातर साहित्यिक रचनाएं कन्नड़ में हैं।

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