
प्रतिवर्ष 17 नवंबर को नेशनल एपिलेप्सी डे मनाया जाता है। इस दिन को मनाने का मकसद लोगों को एपिलेप्सी यानी मिर्गी के प्रति जागरूक करना है। मिर्गी एक न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर यानी तंत्रिका तंत्र संबंधी बीमारी है। इसमें तंत्रिका कोशिका की गतिविधि में रुकावट आने लगती है जिसके वजह से मरीज को दौरे पड़ने लगते हैं। वैसे तो मिर्गी का इलाज एंटी-सीजर दवाओं से किया जाता है हालांकि कुछ मरीजों पर ये दवाएं भी काम नहीं करती हैं। इसके अलावा इन दवाइयों के कुछ साइड इफेक्ट भी हो जाते हैं। बहुत कम लोग जानते हैं कि कुछ प्राकृतिक तरीकों से भी मिर्गी का उपचार किया जा सकता है।आइए जानते हैं इनके बारे में विस्तार से-
मिर्गी का हर्बल उपचार- हर्बल उपचार की लोकप्रियता लगातार बढ़ती जा रही है। कुछ जड़ी बूटियों से मिर्गी की बीमारी पर भी काबू पाया जा सकता है। मिर्गी के लिए सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली जड़ी-बूटियों में कुछ खास झाड़ियां, देहली, ब्राम्ही, घाटी की कुमुदिनी, अमर बेल, सफेद तेजपत्ता, पीअनी, स्कलकैप प्लांट, कल्पवृक्ष और वेलेरियन हैं।
विटामिन- कुछ विटामिन मिर्गी के दौरे को कम करने में मददगार होते हैं, लेकिन ध्यान रखें कि अकेले विटामिन काम नहीं करता है। विटामिन मिर्गी की अन्य दवाओं के साथ प्रभावी ढंग से काम करता है। मिर्गी के इलाज में सबसे असरदार विटामिन B-6 है। कुछ लोगों के शरीर में सही ढंग से विटामिन B-6 नहीं बन पाता है। इसलिए विटामिन B-6 सप्लीमेंट मिर्गी के दौरों कम करने का काम करते हैं। हालांकि अभी इस पर और शोध किए जाने की जरूरत है।
विटामिन E- कुछ लोगों में विटामिन E की कमी से भी दौरे पड़ने लगते हैं। विटामिन E शरीर में एंटीऑक्सीडेंट गुणों को बढ़ाता है। 2016 की एक स्टडी के अनुसार, विटामिन E मिर्गी के लक्षणों को कंट्रोल करता है और इसे मिर्गी की अन्य दवाओं के साथ लिया जा सकता है। इसके अलावा मिर्गी के इलाज के लिए उपयोग किए जाने वाले दवा से बायोटिन या विटामिन D की कमी भी हो सकती है, जिससे लक्षण और बिगड़ सकते हैं। ऐसी स्थिति में आपके डॉक्टर इन विटामिन की गोलियां दे सकते हैं।
मैग्नेशियम- मैग्नीशियम की ज्यादा कमी से भी मिर्गी के दौरे का खतरा बढ़ सकता है। एक शोध के अनुसार मैग्नेशियम सप्लीमेंट मिर्गी के लक्षण को कम करते हैं। हालांकि मिर्गी और मैग्नेशियम के बीच के संबंध को समझने के लिए और स्टडी की जाने की जरूरत बताई गई है।

एक्यूपंक्चर और काइरोप्रेक्टिक ट्रीटमेंट- कभी-कभी एक्यूपंक्चर और काइरोप्रेक्टिक को मिर्गी के उपचार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। इसमें शरीर के कई हिस्सों में सुइयों को चुभोकर दर्द कम करने की कोशिश की जाती है। ऐसा कहा जाता है एक्यूपंक्चर से दिमाग में एक तरह का बदलाव होता है जिससे दौरे कम आते हैं। वहीं काइरोप्रेक्टिक ट्रीटमेंट में रीढ़ की हड्डियों के इलाज के जरिए मिर्गी का उपचार किया जाता है। हालांकि मिर्गी के इलाज में इन दोनों तरीकों का कोई वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं है।
डाइट में बदलाव- खान-पान में बदलाव के जरिए भी मिर्गी पर काबू पाया जा सकता है। इसके लिए कीटोजेनिक डाइट सबसे सही मानी जाती है। कीटो डाइट में कम कार्ब्स और कम प्रोटीन होता है। ये डाइट फॉलो करने वाले मरीजों में मिर्गी के दौरे कम पड़ते हैं। जिन बच्चों को मिर्गी के दौरे पड़ते हैं उन्हें आमतौर पर डॉक्टर कीटोजेनिक डाइट पर ही रखते हैं।

खुद पर नियंत्रण रखना- मिर्गी के मरीजों को अपने दिमाग को कंट्रोल में रखने की कोशिश करनी चाहिए। कई मरीजों को धुंधला दिखना, चिंता, डिप्रेशन, थकान और तेज सिर दर्द की शिकायत होने लगती है। ऐसे में मेडिटेशन करें, टहलें, खुद को किसी काम में व्यस्त रखें। इन सबके साथ अपनी दवाएं जारी रखें। ये तमाम छोटे-छोटे उपाय हैं जिनका प्रयोग करने से काफी हद तक मिर्गी की समस्या से बचा जा सकता है। जरूरी है अपनी दिनचर्या को नियमित करें।