Home Blog मत दो मौका, मिटा दो अब मौत के इन सौदागरों हस्ती

मत दो मौका, मिटा दो अब मौत के इन सौदागरों हस्ती

1190
0

कश्मीर घाटी के पुलवामा में हुए आतंकी हमले में सीआरपीएफ के 44 जवानों को देश ने खो दिया है। जाहिर है कि सारे देश में इस घटना को लेकर भारी गुस्सा है, आक्रोश है। 125 करोड़ भारतीय स्तब्ध हैं, शोकाकुल हैं और जवाबी कारवाई के लिए आतूर हैं । अब इस भयावह हमले का गहराई से विश्लेषण भी चालू हो गया है। यह विश्लेषण तो कई दिनों तक चलता ही रहेगा। कहा यह जा रहा है कि खुफिया सूत्रों ने हमले की आशंका एक दिन पहले ही व्यक्त कर दी थी, फिर भी सुरक्षाबल ने इस और ध्यान क्यों नहीं दिया। जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल सतपाल मलिक ने  भी माना है कि प्रशासन की तरफ़ से इस मामले में चूक हुई है। उन्होंने कहा कि इतनी बड़ी संख्या में एक साथ जवानों की मूवमेंट नहीं होनी चाहिए थी।

अब अपने आप में बड़ा सवाल यह है कि खुफिया एजेंसियों के इनपुट की अनदेखी क्यों होती है? हरेक बड़ी घटना के बाद खबरें आने लगती हैं कि खुफिया एजेंसियों ने हमले की आशंका तो पहले से जता दी थी। अगर खुफिया एजेंसियों की  तरफ से एकत्र सूचनाओं की ही बार-बार अनदेखी की जानी चाहिए, तो फिर खुफिया एजेंसियों पर सरकारें हरेक साल हजारों करोड़ों रुपये फूंकती ही क्यों हैं? फिर तो इनके दफ्तरों पर ताले लगा देने चाहिए। पर बेहद दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह है कि पुलवामा में देश के 44 शूरवीरों के दर्दनाक बलिदान के बाद भी हमारे कुछ कथित नेता बयानबाजी से बाज नहीं आ रहे हैं। अब जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूक अब्दुल्ला को ही ले लीजिए। वे पुलवामा की घटना पर  प्रतिक्रिया देते हुए एक खबरिया टीवी चैनल को कह रहे थे कि “यह तो वहां रोज ही होता है।” वे कश्मीर के सूरते हाल के लिए पकिस्तान को जिम्मेदार मानने तक के लिए भी तैयार नहीं थे। वे लगभग पूरी तरह से कश्मीर के हालातों के लिए भी भारत सरकार को ही जिम्मेदार मान रहे थे। हालांकि, वे खुद कई बार राज्य के मुख्यमंत्री रहे पर वहां हालात बिगड़ते ही रहे। वे कभी ये नहीं बताते कि कश्मीर के मसले का क्या हल है?  अब्दुल्ला साहब सिर्फ इतना कह देते हैं कि “बात करो”। कोई उनसे पूछे, किनसे बात करो? क्या बात करो ? भारत सरकार क्या अब टुच्चे पत्थरबाजों से बात करें? क्या भारत सरकार पाकिस्तान परस्त आई.एस.आई. के टुकड़ों पर पलने वाले पृथकतावादियों से बात करे? खैऱ, अब्दुल्ला साहब से आप उम्मीद ही क्या कर सकते हैं। उन्होंने ही एक बार यह भी कहा था कि “क्या भारत के बाप का है कश्मीर? ”

कश्मीर मसले की तह तक जाने के लिए आवश्यक है कि हम यह जान लें वहां  इस्लामिक कट्टरपन  की जड़ें बेहद गहरी हो चुकी हैं। लेव तोल्स्तोय का एक उपन्यास है ‘हाजी मुराद’।इसमें चेचन्या का ‘’शमील’’ कमोबेश उसी तरह से रूस के खिलाफ ज़िहाद या पवित्र युद्ध की बात करता है जिस प्रकार मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे आतंकवादी करते हैं। इसकी पृष्ठभूमि 1951 की थी। रूस चेचन समस्या से उससे पहले से ही जूझता रहा होगा। लेकिन अब हम मानवता के शत्रुओं के प्रति प्रेम का प्रदर्शन नहीं कर सकते।   हमें बातचीत से [पहले भी सोचना होगा। हमने बातचीत बार-बार और बहुत कर ली है। अब वार्ता का वक्त  निकल चुका है। हमारे पास अपने पड़ोसी चीन का उदाहरण है। चीन ने अपने देश के कट्टपंथीमुसलमानों को छील कर रख दिया है। चीननेमुस्लिमबहुल शिनजियांग प्रांत में रहने वाले कट्टरपंथीमुसलमानों को अच्छी तरह कस दिया है। उन्हें खान-पान के स्तर तक पर भी सब कुछ करना पड़ रहा है,जो उनके धर्म में पूर्ण रूप से निषेध है। यह सब कुछचीनकी कम्युनिस्ट पार्टी के इशारों पर ही हो रहा है।  मजाल है कि चीन के एक्शन पर दुनिया के किसी देश ने, पाकिस्तान या किसी तरह ने भी किसी तरह की प्रतिक्रिया जताई हो। 57 इस्लामिक देशों के संगठन ऑर्गनाइजेशन ऑफइस्लामिककारपोरेशन (ओआईसी) ने भी अब तकचीन से शिकायत दर्ज करने की हिम्मत तक नहीं की है।चीनके शिनजियांग प्रांत केमुसलमानों को री-एजुकेशन कैंपों में लेकर जाकर इस्लाम से तौबा करके कम्युनिस्ट पार्टी की विचारधारा से जोड़ने पर मजबूर किया जा रहा है। इन शिविरों में हमेशा दस लाख से अधिक चीनी मुसलमान रहते हैं। इन शिविरों में इनसे अपने ही धर्म की निंदा करने के लिए कहा जाता है। न करने पर इन्हें डराया-धमकाया, मारा-पीटा जाता है। यह सब कुछ इसलिए हो रहा है ताकिचीनीमुसलमानकम्युनिस्ट विचारधारा को अपना लें। वे इस्लाम की मूल शिक्षाओं से दूर हो जाएं। भारत को चीन जितना इस्लामिक कट्टरपंथियों के खिलाफ सख्त होने की तो जरूरत तो नहीं है, पर कड़ी कार्रवाई तो करनी ही होगी। चूंकि हमारा रुख अभी तक लचीलाही रहा है,जिसके चलते ही पुलवामा में खून-खराबा हुआ है। यह कहावत तो बुजुर्गों ने सोच समझकर ही कही होगी कि “लात के देवता बातों से नहीं मानते।”अबइन्हेंलातकीजरूरतआगईहै।

दर असल कश्मीर घाटी में जब से हिज्बुल कमांडर बुरहान वानी को सुरक्षाबलों ने ढेर किया है, तब से वहां बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन और पत्थरबाजी होने लगे हैं। पत्थरबाजी में  सुरक्षाबलों के सैकड़ों जवान बुरी तरह जख्मी भी हो चुके हैं। इन पत्थरबाजों पर भी जिस तरह की कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए थी, वो नहीं हुई। इनके प्रति नरम रवैया अपनाया जाता रहा है।  कश्मीर प्रशासन में कई असरदार लोग पत्थरबाजों को गले से लगाते हैं। आतंकवादियों और पृथकवादियों के समर्थन में जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी में राहुल गाँधी और सीताराम येचुरी का धरना और पृथकतावादी नारेबाजों का खुलकर समर्थन तो ध्यान में होगा ही।

बहरहाल,पुलवामा के शहीदों के प्रति देश का कर्ज तो तब ही उतरेगा जब कश्मीर से एक-एक भारत विरोधियों को टुकड़े- टुकड़े करके आग के हवाले कर धूल में मिला दिया जाएगा। अब सरकार को राहुल गांधी, ममता बैनर्जी या अरविंद केजरीवल  जैसों राष्ट्र विरोधियों की बिना परवाह किए अपने सख्त फैसले खुद और तुरंत लेने होंगे। आपको याद होगा कि इन्ही नेताओं ने सर्जिकल स्ट्राइक के भी सरकार से पुख्ता प्रमाण मांगे थे। अब सरकार को उन मानवाधिकार संगठनों के झोलाछाप कार्यकर्ताओं की भी सुनने की जरूरत नहीं है, जो उग्रवादियों और आतंकवादियों को ही गले लगाते हैं। इनके लिए सैनिकों की जान का जाना तो सामान्य सी बात है।  पंजाब में खालिस्तान आंदोलन के दौरान जब सुरक्षा बलों ने मौत के सौदागरों के खिलाफ कठोर कार्रवाई चालू की तब दिल्ली के सेमिनार सर्किट में घूमने वाले कथित मानवाधिकारवादियों ने शोर मचाना चालू कर दिया था। ये कहने लगे थे कि पंजाब में मासूमों का कत्ल हो रहा है। सरकार मानवाधिकारों का हनन कर रही है। पर जब आतंकी मासूमों को या पुलिसकर्मियों को मारते थे तब इनकी जुबानें सिल जाती थीं। पुलवामा की घटना का जवाब देने के लिए सरकार ने सेना को खुली छूट दे दी है। अब देश को मानवाधिकारवादियों की एक नहीं सुननी। गोली का जवाब सिर्फ गोली है I ईंट का जवाब सिर्फ पत्थर है I अब देश को आतंकवाद के खिलाफ अंतिम और निर्णायक लड़ाई लड़नी होगी। अब करो या मरो की स्थिति आ चुकी है।

एक बार इंदिरा गाँधी ने बांग्लाभाषियों की व्यथा सुनकर बंगला देश को आजाद कराया था. अब वक्त आ गया है कि मोदी जी सिंधियों, बलूचियों और मुहाजिरों की आवाज को सुने, और एक ही झटके में नापाक पाकिस्तान के चार टुकड़े कर सिंधियों और बलूचियों को भी आजाद कर दें।

(लेखक आरके सिन्हा राज्य सभा सदस्य हैं)

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here