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कोरोना के ख़िलाफ़ भारत को मिला ब्रह्मास्त्र भारतीय महिला के नाम बड़ी उपलब्धि

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नई दिल्ली। कोरोना वायरस के ख़िलाफ़ लड़ाई में भारत की आलोचना अब तक कम लोगों की जांच के लिए हो रही है। लेकिन अब उम्मीद की जा रही है कि इस स्थिति में बदलाव होगा। इस बदलाव की उम्मीद एक वायरोलॉजिस्ट की कोशिशों से जगी है। इस महिला वायरोलॉजिस्ट ने अपने बच्चे को जन्म देने से महज़ कुछ घंटे पहले तक लगातार काम करके भारत का पहला वर्किंग टेस्ट किट तैयार किया है।

बीते गुरुवार को, भरत में निर्मित पहला कोरोना वायरस टेस्टिंग किट बाज़ार तक पहुंच गया है, माना जा रहा है कि संदिग्धों के बढ़ते मामलों में अब इसके ज़रिए कोविड-19 के मरीज़ों की पुष्टि जल्द हो पाएगी। पुणे की मायलैब डिस्कवरी भारत की पहली ऐसी फ़र्म है जिसे टेस्टिंग किट तैयार करने और उसकी बिक्री करने की अनुमति मिली है।

इसने इस सप्ताह पुणे, मुंबई, दिल्ली, गोआ और बेंगलुरु में अपनी 150 टेस्ट किट की पहली खेप भेजी है। मायलैब डिस्कवरी के मेडिकल मामलों के निदेशक डॉ। गौतम वानखेड़े ने बताया, “हमारी मैन्यूफ़ैक्चरिंग यूनिट इस वीकएंड पर भी काम कर रही है, हम अगली खेप सोमवार को भेजेंगे।”

यह मॉलिक्यूलर डायगनॉस्टिक कंपनी, एचआईवी, हेपाटाइटिस बी और सी सहित अन्य बीमारियों के लिए भी टेस्टिंग किट तैयार करती है। कंपनी का दावा है कि वह एक सप्ताह के अंदर एक लाख कोविड-19 टेस्ट किट की आपूर्ति कर देगी और ज़रूरत पड़ने पर दो लाख टेस्टिंग किट तैयार कर सकती है।

गर्भवती वायरोलॉजिस्ट ने बनाई किट
मायलैब की प्रत्येक किट से 100 सैंपलों की जांच हो सकती है। इस किट की कीमत 1200 रुपये है, जो विदेश से मंगाए जाने वाली टेस्टिंग किट के 4,500 रुपये की तुलना में बेहद कम है।

मायलैब डिस्कवरी की रिसर्च और डेवलपमेंट प्रमुख वायरोलॉजिस्ट मीनल दखावे भोसले ने बताया, “हमारी किट कोरोना वायरस संक्रमण की जांच ढाई घंटे में कर लेती है, जबकि विदेश से आने वाले किट से जांच में छह-सात घंटे लगते हैं।”

मीनल उस टीम की प्रमुख हैं जिसने कोरोना वायरस की टेस्टिंग किट यानी पाथो डिटेक्ट तैयार किया है, वो भी बेहद कम समय में। ऐसी किट को तैयार करने में अमूममन तीन से चार महीने का वक़्त लगता है लेकिन इस टीम ने छह सप्ताह के रिकॉर्ड समय में इसे तैयार कर दिया।

दिलचस्प यह है कि इस दौरान मीनल ख़ुद भी एक डेडलाइन का सामना कर रही थीं, बीते सप्ताह उन्होंने बेबी गर्ल को जन्म दिया है। गर्भावस्था के दौरान ही बीते फ़रवरी महीने में उन्होंने टेस्टिंग किट प्रोजेक्ट पर काम करना शुरू किया था।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी
मीनल ने बीबीसी को बताया, “यह आपातकालीन परिस्थिति थी, इसलिए मैंने इसे चैलेंज के तौर पर लिया। मुझे भी अपने देश की सेवा करनी है।”

मीनल के मुताबिक़, 10 वैज्ञानिकों की उनकी टीम ने इस प्रोजेक्ट को सफल बनाने के लिए काफ़ी मेहनत की।

अपनी बेटी को जन्म देने से महज़ एक दिन पहले, 18 मार्च को उन्होंने टेस्टिंग किट की परख के लिए इसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) को सौंपा।

उसी शाम को यानी अस्पताल में जाने से पहले, उन्होंने इस किट के प्रस्ताव को भारत के फ़ूड एंड ड्रग्स कंट्रोल अथॉरिटी (सीडीएससीओ) के पास व्यवसायिक अनुमति के लिए भेजा।

डॉक्टर वानखेड़े बताते हैं, “हमारे पास बेहद कम समय था। हमारी साख का भी सवाल था। लेकिन पहली बार में ही सबकुछ ठीक रहा। हमारी कोशिशों का नेतृत्व मीनल कर रही थीं।”

मेडिकल रिसर्च

इस किट को परखने के लिए भेजे जाने से पहले टीम ने इस अलग-अलग मापदंडों पर कई बार जांचा परखा ताकि इसके नतीजे सटीक निकलें।
मीनल भोसले बताती हैं, “अगर आपको किसी सैंपल के 10 टेस्ट करने हों तो सभी दसों टेस्ट के नतीजे एक समान होने चाहिए। हमने यह परफ़ेक्शन हासिल कर लिया। हमारी किट परफैक्ट है।” भारत सरकार के इंडियन काउंसिल फ़ॉर मेडिकल रिसर्च (आईसीएमआर) ने मायलैब किट को सही ठहराया है। नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी (एनआईवी) इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च के अधीन काम करती है। आईसीएमआर ने कहा कि मायलैब भारत की इकलौती कंपनी है जिसकी टेस्टिंग किट के नतीजे 100 प्रतिशत सही हैं।

अब तक कम हुए हैं टेस्ट
भारत में कोरोना वायरस संक्रमण का पता लगाने वाले टेस्ट बेहद कम हुए हैं। यहां प्रति दस लाख लोगों में महज़ 6।8 लोगों के टेस्ट किए गए हैं, जो दुनिया भर के देशों में सबसे निम्नतम दर है। शुरुआत में, भारत में केवल उन लोगों के टेस्ट किए गए जो हाई रिस्क वाले देशों की यात्रा से लौटे थे या फिर किसी संक्रमित मरीज़ या मरीज़ का इलाज कर रहे स्वास्थ्यकर्मी के संपर्क में आए थे। बाद में सरकार की ओर से कहा गया कि श्वसन संबंधी गंभीर बीमारियों के चलते अस्पताल में भर्ती मरीज़ों की भी जांच होगी। लेकिन संक्रमण का दायरा हर दिन बढ़ता जा रहा है, आशंका जताई जा रही है कि कोरोना वायरस संक्रमण के मामले तेज़ी से बढ़ेंगे।

डायगनॉस्टिक किट
पिछले कुछ दिनों में भारत ने कोरोना वायरस संक्रमण का पता लगाने के लिए जांच की संख्या बढ़ाई है। शुरुआत में, केवल सरकारी लैब को इस टेस्ट की अनुमति मिली थी, लेकिन अब इसका दायरा बढ़ाकर कुछ प्राइवेट लैब को भी इसमें शामिल किया गया है।
गुरुवार को, भारत ने 15 निजी कंपनियों को लाइसेंस के आधार पर व्यवसायिक तौर पर अमरीका, यूरोपीय देशों और कुछ अन्य देशों से मंगाए गए डायगनॉस्टिक किट बेचने की अनुमति दी है। डॉ. वानखेड़े के मुताबिक लैब और आपूर्तिकर्ताओं की संख्या हर दिन बढ़ रही है, ऐसे में टेस्ट में तेज़ी आएगी।

क्या है भारत की चुनौती
कोरोना वायरस के संक्रमण के लिए टेस्टों की बढ़ती संख्या से निश्चित तौर पर मदद मिलेगी।
लेकिन भारत में नाममात्र की स्वास्थ्य सुविधाओं को देखते हुए विश्लेषक तत्काल जांच की संख्या बढ़ाए जाने की मांग कर रहे हैं। भारत की पूर्व स्वास्थ्य सचिव सुजाता राव बताती हैं, “छोटे से देश दक्षिण कोरिया में भी कोरोना वायरस टेस्ट करने वाले 650 लैब हैं। हमारे यहां कितने हैं?” भारत में अभी 118 सरकारी लैब में कोरोना वायरस संक्रमण की जांच होने की व्यवस्था है। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक 50 निजी लैब को जल्दी ही इसमें शामिल कर लिया जाएगा। लेकिन 1।3 अरब लोगों की आबादी के सामने यह पर्याप्त नहीं है। सुजाता राव कहती हैं, “भारत को ऐसे लैबों की संख्या बढ़ानी होगी। इसके बाद वहां टेस्टिंग किट पहुंचानी होगी। टेक्नीशियन को प्रशिक्षित करना होगा। इन सबकी व्यवस्था में समय लगेगा।” कोरोना वायरस संक्रमण की जांच बढ़ने की स्थिति में अगर कोरोना वायरस से पॉज़िटिव लोगों की संख्या तेज़ी से बढ़ी तो उन्हें अस्पताल में दाख़िल कराना चुनौती होगी।
सुजाता राव बताती हैं, “देश की स्वास्थ्य सुविधाओं के स्तर के बारे में आपको पता है? जो सुविधाएं हैं भी वो शहरी इलाक़ों में हैं। ग्रामीण इलाकों में तो मामूली सुविधाओं का भी अभाव है। यह बहुत बड़ी चुनौती साबित होगा।”

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