पूरन डावर- सामाजिक चिंतक एवं विश्लेषक
जीवन सार
हम पथिक हैं। ईश्वर ने जीवन रूपी फ़िल्म में एक निश्चित रोल दिया है—किसी को सकारात्मक, किसी को नकारात्मक; किसी को हीरो का, किसी को विलन का… तो किसी को मोहरा या साइड रोल।
मृत्यु शाश्वत नियम है; केवल कर्मों से अमर हो सकते हैं, शरीर से अमर नहीं हो सकते। आत्मा आत्म बोध है—अजर है, अमर है।
जो हुआ सो अच्छा हुआ, जो हो रहा है सो अच्छा हो रहा है, जो होगा सो अच्छा होगा—यही जीवन का सार है।
हम निमित्त मात्र हैं। कर्म कर, फल की इच्छा मत कर, यही गीता का सार है और यही रामायण का।
हानि-लाभ, जीवन-मरण, यश-अपयश विधि हाथ।
धर्म प्रकृति का भाग है। अपने धर्म का प्रचार करना, गुणगान करना, विश्वास जताना हमारा कर्तव्य है। सामान्यतः प्रकृति में “किंतु-परंतु” की गुंजाइश नहीं रहती।
अध्यात्म का एक-एक शब्द अक्षरशः सत्य है। उसके एक-एक शब्द के भावार्थ को समझना ही मनुष्य जीवन को सार्थक बनाता है—यही उसका विकास है—कलियुग से द्वापर, द्वापर से त्रेता, और त्रेता से सतयुग का मार्ग है।
धार्मिक कट्टरता प्रारंभिक जीवन का हिस्सा है—आस्था है, विश्वास है—कोई किंतु-परंतु नहीं है। यदि ऐसा होगा तो आस्था नहीं।
जब तक अध्यात्म के सही अर्थों को नहीं समझ पाते, तब तक कट्टरता बनी रहती है। जैसे ही भावार्थ को समझने की शक्ति विकसित होती है, तो धार्मिक कट्टरता समय के साथ कम हो जाती है।
धर्म में वह शक्ति है जो आपको काफ़ी हद तक संचालित करती है। जो क़ानून का डर नहीं रोक पाता, वह निराकार भगवान रोकता है।
आप कितने भी शक्तिमान क्यों न हों, क़ानून को ख़रीदने की बड़ी शक्ति आपके पास हो—लेकिन यह सोचकर कि “ऊपर तो जवाब देना है, ऊपरवाला सब देख रहा है, ऊपरवाले के खाते में सब कुछ है”—(और आज तो गूगल बाबा को आपके बारे में आपसे बड़ा ज्ञान है, घर के पते की भी ज़रूरत नहीं है…)—रुक जाते हैं, झूठ बोलते-बोलते रुक जाते हैं—ऊपरवाले को तो जवाब देना है।
आज भी ९० प्रतिशत क्राइम ऊपरवाले से डर के कारण रुकते हैं या धर्म की शिक्षा के कारण किए ही नहीं जाते—मात्र १० प्रतिशत क़ानून के डर से।
मानव सेवा भी धर्म से प्रेरित होकर करते हैं। आध्यात्म में कहा है—सेवा से आपके जन्म-जन्म-जन्मांतर तर जाएंगे।
भावार्थ यह है कि जब आप अपनी सेवा के माध्यम से जो पीछे रह गए हैं, उन्हें खड़ा करते हैं, तो वही आपकी अगली पीढ़ी के ग्राहक बनने वाले हैं।
उदाहरण के तौर पर, आज हम सब मिलकर भारत के २२ करोड़ लोगों को बीपीएल से बाहर निकालते हैं, तो आपकी अगली पीढ़ी को २२ करोड़ नए परिवार ग्राहक के रूप में मिलते हैं।
यह आपका लंबी अवधि निवेश है और यही जन्म-जन्मांतर का अर्थ है।
देवता–राक्षस, सुर–असुर, विकसित–अविकसित, सकारात्मक–नकारात्मक, दक्षिण पंथ–वाम पंथ, डेवलप्ड–अनडेवलप्ड
—एक ही शब्द हैं जो समय-समय पर भाषा के अनुरूप प्रचलित हुए हैं।
दैनिक यज्ञ
आप अपने परिवार पालन के लिए जो नित्य करते हैं, वही दैनिक यज्ञ है।
जो इस शांतिपूर्ण यज्ञ को भंग करने आते हैं, वसूली के लिए आते हैं, कार्य में विघ्न पहुँचाते हैं—वही असुर हैं।
सामूहिक यज्ञ
जो हम सामाजिक दायित्वों की पूर्ति सेवा करते हैं, समाज के सब लोग अपना योगदान देते हैं—यही सामूहिक आहुति और यही सामूहिक यज्ञ है।
अश्वमेध यज्ञ
यूनाइटेड नेशन, यूएनएससी या अमेरिका जैसे देश या नाटो जैसी शक्तियाँ, विश्व कल्याण के लिए जो कार्य करती हैं, अश्वमेध यज्ञ कहा जा सकता है।
तपस्या
जो दैनिक यज्ञ और सामूहिक यज्ञों के माध्यम से पहाड़ जैसी चुनौतियों का सामना करते हुए ४० वर्षों तक घोर परिश्रम करते हैं—यही ४० वर्षों तक पहाड़ पर बैठकर तपस्या है।
और जो ४० वर्षों के कठिन परिश्रम के बाद हासिल करते हैं—वही भगवान द्वारा दिए गए वरदान हैं।