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पढ़िए स्वतंत्रता संग्राम के नायक पं. रोशनलाल सूतैल का जीवन परिचय

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स्वतंत्रता आंदोलन के नायक पं. रोशनलाल सूतैल का जन्म 20 जुलाई, 1916 को पं. परसादीलाल के यहाँ नगला रामपुर, ग्राम बवरोद, तहसील किरावली, आगरा में हुआ। आप नूरी दरवाजा, शहीद भगत सिंह द्वार आगरा में निवास करते थे।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में योगदान
आपने 23 अप्रैल, 1928 को राजनीति में प्रवेश किया। सन् 1930 में बाल भारत सभा के सदस्य बने। उसी संदर्भ में आपका सम्पर्क क्रांतिकारियों से हुआ। सन् 1934 में हथियार खरीदते हुए लश्कर में गिरफ्तार हो गये। रिहा होने के बाद आप मजदूरों का संगठन करते हुए क्रान्तिकारियों के सम्पर्क में बने रहे और कांग्रेस का संगठन भी करते रहे। इसके बाद आप शहर कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी के सदस्य हो गये। सन् 1940 में जब आगरा में राम बारात निकल रही थी, उस समय जिलाधिकारी हार्डी (अंग्रेज) पर बम फेंका जिसमें स्वयं तो बच गये किन्तु अन्य बहुत से लोग गम्भीर रूप से घायल हुए। इस संदर्भ में पं. नत्थीलाल शर्मा, कामता प्रसाद उर्फ बच्चा बाबू शर्मा एवं वासुदेव गुप्त के साथ आपको गिरफ्तार करके केन्द्रीय कारागार और श्री सन्त सरनसिंह जादौन, श्री सत्यनारायण वर्मा, भवानी शंकर मिश्र, मदनलाल आजाद को जिला जेल में बन्द कर दिया गया। धारा 26 के अन्तर्गत 2 अक्टूबर, 1940 को केन्द्रीय कारागार आगरा में बन्द कर दिये गये। इसके बाद आपका आगरा जेल से ट्रांसफर फतेहगढ़ सेण्ट्रल जेल में कर दिया गया जहाँ से 9 जनवरी सन् 1945 को रिहा हुए।

उपलब्धि
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् आपने अनेक मजदूर संगठनों में कार्य करते हुए बहुत बार जेल यातनायें सहीं। सन् 1952 से 1980 तक शहर कांग्रेस कमेटी के महामन्त्री रहे तथा सन् 1953 से 1957 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे हैं। अप्रैल, 1980 से जीवनोपरान्त तक आपने स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी समिति के महामन्त्री पद पर बड़ी योग्यता एवं लगन के साथ काम किया। 1985 से आप अध्यक्ष थे। जब कांग्रेस ने स्वतन्त्रता संग्राम सेनानियों के संगठन की ओर ध्यान दिया और आगरा में स्वतन्त्रता संग्राम सैनानी सैल बनाई, तब आप आगरा शहर के संयोजक बने। आप कांग्रेस इण्टक और कांग्रेस सेवा दल के कार्यकर्ताओं को भी सलाह और सुझाव देते रहते थे। आप समाजवादी विचारधारा रखते हुए सदैव गरीबों, मजदूरों की सेवा में लगे रहते थे।

“बुजदिलों को ही सादा मौत से डरते देखा।
गोकि सौ बार उन्हें रोज ही मरते देखा।।
मौत से वीरों को हमने नहीं डरते देखा।
तख्त ऐ मौत पै भी खेल ही करते देखा।।
मौत एक बार जब आनी है तो डरना क्या है।
हम सदा खेल ही समझ किये मरना क्या है।।
वतन हमेशा रहे शाषकाम और आजाद ।
हमारा क्या है, अगर हम रहे, रहे न रहे।।”