लखनऊ। कहते हैं कि दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है लेकिन जब बात राजनीति की हो तो यह कहावत और ज्यादा चरितार्थ हो जाती है। करीब 24 साल तक एक-दूसरे को बेहद नापसंद करने वाले समाजवादी पार्टी के संरक्षक मुलायम सिंह यादव और बीएसपी सुप्रीमो मायावती एक मंच पर नजर आ सकते हैं। मायावती गेस्ट हाउस कांड को भुलाकर समाजवादी पार्टी के गढ़ मैनपुरी में मुलायम सिंह के लिए वोट मांगने पहुंच रही हैं। हालांकि मंच पर पहले चार और फिर तीन कुर्सियों को लगाए जाने से मुलायम के आने पर सस्पेंस बना हुआ है।
चारों तरफ बीएसपी का नीला रंग ही दिखाई पड़ रहा है। बताया जा रहा है कि पहले चार कुर्सियां मुलायम सिंह, मायावती, अखिलेश यादव और अजित सिंह के लिए लगाई गई थीं लेकिन बाद में एक कुर्सी हटा ली गई। ऐसे अटकले लगनी शुरू हो गई हैं कि मुलायम सिंह मायावती के साथ मंच साझा करेंगे या नहीं। उधर, इस संयुक्त रैली बनाए गए मंच पर कहीं भी समाजवादी पार्टी के लाल और हरे रंग का अता-पता नहीं है।
रैली मंच के बाएं तरफ 5 कटआउट लगे हैं जिनमें दो और शेष अखिलेश यादव, अजित सिंह और मुलायम सिंह के हैं। मंच के दाएं तरफ 7 कटआउट है जिनमें पांच बहुजन समाज पार्टी से जुड़े महापुरुषों के हैं। उधर, समाजवादी पार्टी के सूत्रों का दावा है कि जो कुर्सी हटाई गई वह अजित सिंह की है। उनका कोई कार्यक्रम नहीं था। हालांकि अभी इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है।
उस समय जब राजधानी दिल्ली में लोकसभा सीटों के बंटवारे को लेकर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच ट्विटर वॉर चल रहा है। बीएसपी सुप्रीमो मायावती और एसपी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने देश को यह मजबूत संदेश देने की कोशिश की है कि वे बीजेपी को हराने के लिए अपनी 24 साल पुरानी दुश्मनी को भी भुला सकते हैं। इससे विपक्ष में उनकी एक मजबूत छवि बनी है।
केवल कटुता को भुलाया ही नहीं बल्कि एसपी और बीएसपी ने अपने कार्यकर्ताओं को साथ लाने की कोशिश की है। साथ ही दोनों ही दल यह दर्शाना चाहते हैं कि कांग्रेस और बीजेपी के अलावा एक तीसरा मोर्चा भी है। दो जून 1995 के गेस्ट हाउस कांड के बाद ऐसा पहली बार होगा जब मायावती मुलायम सिंह के साथ मंच साझा करेंगी।
‘गेस्ट हाउस कांड’ होते ही रिश्तो में आयी दरार
बता दें कि 1992 में मुलायम सिंह यादव ने समाजवादी पार्टी बनाई और 1993 के विधानसभा चुनाव में दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ा था। इस गठबंधन को जीत मिली थी और मुलायम सिंह यादव सीएम बने थे। हालांकि, दो ही साल में दोनों पार्टियों के बीच रिश्ते खराब होने लगे। इसी बीच मुलायम सिंह को भनक लग गई कि मायावती बीजेपी के साथ जा सकती हैं।
मायावती लखनऊ स्थित गेस्ट हाउस में विधायकों के साथ बैठक कर रहीं थीं। इतने में एसपी के कार्यकर्ता और विधायक वहां पहुंचे और बीएसपी के कार्यकर्ताओं के साथ मारपीट करने लगे। आरोप है कि मायावती पर भी हमला करने की कोशिश की गई लेकिन उन्होंने खुद को एक कमरे में बंद करके खुद को बचा लिया। इस घटना के बाद मायावती ने समर्थन वापस लेने के ऐलान कर दिया। इसके बाद मायावती बीजेपी से समर्थन से सीएम बन गईं।
सीएम बनने के बाद मायावती ने मुलायम सिंह सरकार द्वारा उद्योगपतियों को दिए गए लाइसेंस को निरस्त कर दिया। उन्होंने कई जांच भी शुरू कर दी। वर्ष 2003 में जब मुलायम सिंह यादव मुख्यमंत्री बने तो उन्होंने भीमराव अंबेडकर पार्क के निर्माण कार्य को रोक दिया। यही नहीं पार्क की बिजली की सप्लाई को भी बंद कर दिया गया। इससे मायावती का ड्रीम प्रॉजेक्ट अधर में लटक गया।
मुलायम ने कराई थी भर्ती,माया की निरस्त
वर्ष 2007 में मायावती दोबारा जोरदार बहुमत के साथ सत्ता में आईं और उन्होंने अपने ड्रीम प्रॉजेक्ट को बंद करने वाले सभी आदेश वापस ले लिए। मायावती ने मुलायम के काल में भर्ती किए गए 22 हजार पुलिसकर्मियों की भर्ती को भी निरस्त कर दिया। उन्होंने मुलायम परिवार के सदस्यों को पुलिस भर्ती में घोटाले के लिए जेल भेजने की भी धमकी दी। उन्होंने कई पुलिस अधिकारियों को इस संबंध में जेल भेज दिया।
इसके बाद वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुलायम सिंह ने प्रण किया था कि वह ‘अगर सत्ता में आए तो मायावती और कांशीराम समेत सभी दलित नेताओं की मूर्ति और पार्क को बुलडोजर से ढहा देंगे। हालांकि चुनाव के बाद अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बने और उन्होंने कैग, सतर्कता आयोग की तमाम रिपोर्ट के बाद भी मायावती के मंत्रियों के खिलाफ कोई भी ऐक्शन लेने से इंकार कर दिया।
24 घंटे के अंदर, अखिलेश ने लगवाई माया की मूर्ति
यही नहीं लखनऊ में मायावती की मूर्ति तोड़े जाने के बाद 24 घंटे के अंदर अखिलेश सरकार ने उसे दोबारा लगवा दिया। इससे राज्य में दलित-ओबीसी जातियों के बीच संघर्ष होने से रुक गया। इस घटना के कई साल बाद वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव से सबक लेते हुए वर्ष 2018 में मायावती और अखिलेश ने राज्य में फूलपुर, गोरखपुर और कैराना के उपचुनाव में बीजेपी को हराने के लिए हाथ मिला लिया। तीनों जगहों पर गठबंधन को जीत मिली। इसी के बाद दोनों के बीच लोकसभा चुनाव में गठबंधन बनाने पर सहमति बनी।
purchase amoxicillin generic – https://combamoxi.com/ amoxil canada
diflucan pills – https://gpdifluca.com/ fluconazole 100mg usa
cenforce buy online – https://cenforcers.com/# buy cenforce generic
cialis online reviews – https://ciltadgn.com/ cialis super active vs regular cialis